चार्जशीट क्या होती है? चार्ज शीट पेश होने के बाद क्या होता है?

Charge sheet in Hindi: आप सभी ने कभी न कभी टीवी प्रोग्राम या समाचार पत्र में चार्जशीट का नाम जरूर सुना होगा। जब कोई व्यक्ति किसी व्यक्ति के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए एफआईआर दर्ज कराता है तो दोषी व्यक्ति के आपराधिक मामलों की कानूनी कार्यवाही के दौरान Charge sheet का उपयोग किया जाता है, लेकिन अधिकतर लोगो को इस शब्द का मतलब नहीं पता होता है।

इसलिए आज इस आर्टिकल में हम चार्जशीट क्या होती है? पुलिस चार्जशीट का मतलब क्या है? (Police Charge sheet in Hindi)? चार्जशीट कब दाखिल होती है? और इससे संबंधित सभी महत्वपूर्ण जानकारी उपलब्ध कराने जा रहे है। अगर आप भी चार्जशीट क्या होती है? और इससे संबंधित सभी जानकारी प्राप्त करना चाहते हैं तो लास्ट तक हमारे साथ बने रहिए।

चार्जशीट क्या होती है? (Police Charge sheet in Hindi)

चार्जशीट किसी भी आपराधिक मामलों की कानूनी कार्यवाही करने के लिए एक अहम दस्तावेज होता है, इससे हिंदी भाषा में आरोप-पत्र अथवा चालान भी कहते है। जब कोई व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति के खिलाफ पुलिस स्टेशन में शिकायत दर्ज करवाता है, उसके पश्चात पुलिस के द्वारा उस मामले की जांच की जाती है और उस मामले से जुड़े सभी सबूत इक्टठे किए जाते है और सुनिश्चित किया जाता है कि आगे केस आगे चलने लायक है या नहीं। 

चार्जशीट क्या होती है  चार्ज शीट पेश होने के बाद क्या होता है

अगर केस को आगे चलाना आवश्यक है तो पुलिस के द्वारा चार सीट को दंड प्रक्रिया संहिता 1973 की धारा 170 के अनुसार अदालत में पेश किया जाता है और इसी के आधार पर कोर्ट द्वारा केस का ट्रायल शुरु किया जाता है। आपकी जानकारी के लिए बता दें कि किसी भी प्रकार के आपराधिक मामले के लिए सरकार के द्वारा 90 दिनों तक पुलिस अदालत के सामने चार्जशीट पेश करती है और कोर्ट के द्वारा चार्जशीट के आधार पर अदालत आरोपी के खिलाफ आरोप तय करती है और उससे सजा दी जाती है। 

क्यों अहम है चार्जशीट?

किसी भी प्रकार के आपराधिक मामले से संबंधित पुलिस स्टेशन में एफआईआर दर्ज होने के पश्चात पुलिस विभाग उस केस की जांच करना शुरू कर देती है और 90 दिनों के अंदर मामले से संबंधित चार्जशीट बनाकर अदालत में पेश की जाती है. लेकिन अगर पुलिस 90 दिनों के अंदर चार्जशीट को कोर्ट में दाखिल नहीं कर पाती तो ऐसी स्थिति में आरोपी को कोर्ट से जमानत ले सकता है। असल में निर्धारित अवधि के दौरान आरोप पत्र दायर न करने पर सीआरपीसी की धारा 167(20) के तहत आरोपी व्यक्ति को डिफाल्ट जमानत मिल जाती है। 

चार्ज शीट पेश होने के बाद क्या होता है?

वैसे तो पुलिस के द्वारा किसी मामले की पूरी जांच करने के बाद मिलने वाले सबूत के आधार पर आगे की कार्यवाही की जाती है यदि पुलिस को छानबीन के दौरान आरोपी के खिलाफ कोई सबूत नहीं मिलता है तो पुलिस आरोपी व्यक्ति के खिलाफ CRPC की धारा 169 के तहत पुलिस कोर्ट में False Report दाखिल कर सकती है और अगर छानबीन के दौरान आरोपी के खिलाफ पर्याप्त सबूत मिल जाते हैं तो इस परिस्थिति में पुलिस के द्वारा सीआरपीसी की धारा 173 के तहत न्यायालय के सामने आरोप पत्र दाखिल कर दिया जाता है और फिर न्यायालय के द्वारा आरोपी व्यक्ति के पास सम्मन भेजा जाता है।

जो एक प्रकार का कानूनी पत्र होता है। सम्मन पत्र में कोर्ट के द्वारा आरोपी को कोर्ट में कब हाजिर होना है, इसका आदेश दिया जाता है। इस कानूनी पत्र को प्राप्त करने के पश्चात आरोपी व्यक्ति को न्यायालय में पेश होना पड़ता है जहां वह अपने बचाव के लिए अपना केस लड़ने के लिए वकील भी कर सकता है परंतु यदि किसी आरोपीय व्यक्ति पर गैर जमानती है अपराध की धारा लगाई गई है तो उसे व्यक्ति को कोर्ट के आदेश पर तुरंत जेल में भेज दिया जाता है लेकिन अगर आरोपी व्यक्ति पर जमानती धारा लगी हुई है तो वह कोर्ट से जमानत लेने के लिए अपनी यात्रा दायर कर सकता है।

Charge Sheet को चुनौती कैसे दे सकते है या चार्जशीट को रद्द कैसे करें?

यदि किसी व्यक्ति के द्वारा आरोपी व्यक्ति पर कोई संगीत आरोप लगाया गया है और पुलिस को अपनी छानबीन के दौरान आरोपी पर लगाए गए आरोपों का सबूत नहीं मिलता है या फिर शिकायत के अनुसार अपराधी के ऊपर लगाए गए अपराध का खुलासा नहीं हो पता है तो ऐसी स्थिति में न्यायालय के द्वारा एफआईआर व आरोप पत्र को कोर्ट द्वारा रद्द किया जा सकता है। कोई भी व्यक्ति अपने ऊपर लगाए गए आरोपों के सबूत न मिलने या फिर शिकायत के अनुसार की गई बातों के अनुसार अपराध सिद्ध न होने की स्थिति में वह सीआरपीएफ की धारा 882 के तहत एफआईआर खारिज करने की उच्च न्यायालय में याचिका दायर कर सकता है।

एफआईआर और चार्जशीट में अंतर (Difference between FIR and Chargesheet)

हमारे बीच बहुत सारे ऐसे लोग हैं जिन्हें लगता है कि एफआईआर और चार्जशीट दोनो एक ही दस्तावेज होते हैं इसलिए हमने नीचे कुछ आसान बिंदुओं के माध्यम से एफआईआर और चार्जशीट में अंतर के संबंध में बताया है, जो कुछ इस प्रकार से नीचे दिएगए है- 

  • FIR किसी प्रकार की मामले की शिकायत से संबंधित दस्तावेज होता है और चार्जशीट उन अपराधों के आरोपियों पर आरोप लगाया जाता है।
  • पुलिस स्टेशन में एफआईआर दर्ज करने के पश्चात जांच की शुरुआत होती है और वही जांच खत्म होने के पश्चात पुलिस चार्जसीट तैयार करती है।
  • एफआईआर को तुरंत दर्ज करवा सकते हैं लेकिन चार्जशीट जमा करने की एक निर्धारित अवधि होती है, जिस मामले की जांच करने के पश्चात पुलिस के द्वारा तैयार किया जाता है। 
  • जहां एफआईआर एक लिखित दस्तावेज होता है, वहीं चार्ज सीट एक औपचारिक दस्तावेज है, जो पुलिस द्वारा संज्ञेय अपराधों के कमीशन के बारे में जानकारी प्रदान  करता है।
  • चार्ज शीट उन आपराधिक मामलों के लिए तर्ज की जाती है जिस पर व्यक्ति की गिरफ्तारी की जानी है और वही एफआईआर किसी संबंधित अपराध की शिकायत का विवरण देता है।

Charge sheet Related FAQs

चार्जशीट क्या होती है?

यह एक बहुत ही महत्वपूर्ण कानूनी दस्तावेज होता है, जिसके आधार पर न्यायालय किसी भी मामले के केस को आगे तक चलने का फैसला लेकर अपराद ही को सजा दे सकता है।

चार्जसीट कितने दिनों के अंदर न्यायालय में पेश करनी पड़ती है?

किसी भी आपराधिक मामले की शिकायत दर्ज होने के ठीक 90 दिनों के अंदर अंदर पुलिस अधिकारी के द्वारा कैसे की छानबीन करके चार्ज सेट तैयार करनी होती है और फिर उसे न्यायालय में पेश करना पड़ता है।

अगर निर्धारित समय अवधि में चार्ज शीट दायर न की जाए तो क्या होगा?

अगर पुलिस निर्धारित समय अवधि के अंतर्गत चार्ज शीट को कोर्ट में दायर करने में असमर्थ रहती है तो ऐसी स्थिति में आरोपी व्यक्ति जमानत प्राप्त करने के लिए अपनी याचिका दायर कर सकता है।

निष्कर्ष

आप हमारे इस आर्टिकल में चार्जसीट क्या होती है? के संबंध में बताई गयी सभी जानकारी आपके लिए उपयोगी साबित रही होगी और आप जान चुके होंगे कि एफआईआर और चार्ज शीट में क्या अंतर होता है। अगर आपके लिए हमारा यह आर्टिकल अच्छा लगा हो तो कृपया करके इसे अपने दोस्तों के साथ जरूर शेयर करें और अगर आप आगे भी ऐसी अनोखी जानकारी प्राप्त करना चाहते हैं तो लगातार हमारी वेबसाइट के साथ बने रहिए।

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